अजीब शक्ल है रे तेरी,
कहीं तो भक्षक और 
कहीं सेवक बना जा रहा है 
जहाँ से हुई उत्पत्ति तेरी 
उसी को कलंकित किए जा रहा है 
मार देती है जन्म के बाद 
ख़ुद शेरनी अपने नर शावक को 
कहीं बड़ा होकर स्वयं पर ना हमला बोले
ये ख़ुद तो तेरे जन्म 
के बाद भी होना था..
देवी पूजन के बाद तू ख़ुद 
कन्याओं को भोग खिलाता है 
और आडंबर का चोला 
फेंककर फिर इनका ही भोग लगाता है 
कौन से इंसानी कोख से जन्म लिया 
काश तू भी होता अनचाही औलाद तो 
किसी कूड़े के ढेर में पड़ा होता ,
ना ये रचता कालखंड और ना 
ये इंसान बुरा होता....

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